जन भारत TV, पटना,कुणाल शाण्डिल्य,
जब-जब भोजपुरी भाषा का जिक्र होता है तो हमारे मस्तिष्क में सबसे पहले जो बात आती है वह भोजपुरी के गाने हैं, और यह बात सच भी है। लेकिन भोजपुरी गानों का मतलब सिर्फ आज के “लॉलीपॉप” और “ठीक है” से नहीं है बल्कि इसकी पहचान तो वर्षों पहले ही कई महान शख्सियतों के द्वारा कराई जा चुकी है.
आज हम भोजपुरी भाषा के एक ऐसे ही महान रचनाकार भिखारी ठाकुर की बात करने जा रहें हैं, जिनको केवल भाषा का अल्प ज्ञान होने के बावजूद भी “भोजपुरी का शेक्सपियर” कहा जाता है। 18 दिसंबर 1887 को बिहार के छपरा जिले के छोटे से गांव क़ुतुबपुर के एक सामान्य परिवार में इनका जन्म हुआ था. भोजपुरी संस्कृति को एक नई ऊंचाइयों तक ले जाने और एक नई दिशा देने का श्रेय भिखारी ठाकुर जी को जाता है. उन्होंने भोजपुरी भाषा में तकरीबन 29 किताबें लिखी है. उनकी “विदेशिया” फिल्म काफी लोकप्रिय रही.
शुरुआती दौर में रोजी-रोटी के लिए अपने गांव को छोड़कर उन्हें खड़गपुर जाना पड़ा। वहां उन्होंने पैसे तो कमाए लेकिन उनका मन संतुष्ट नहीं हुआ। अपने गांव वापस आकर उन्होंने एक नाच मंडली बनाई और वे रामलीला करने लगे। यह काम उनके परंपरागत जातिगत पेशे से हटकर था। बिदेसिया, भाई-बिरोध, गंगा-स्नान, बिधवा-बिलाप आदि इनके लोकप्रिय नाटक है जिसे देखने के लिए लोगों का तांता लग जाता था। केवल बिहार ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश ,झारखंड ,बंगाल में भी इनकी लोकप्रियता अच्छी खासी थी। इतना ही नहीं बल्कि उनके नृत्य मंडली के द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली ‘लौंडा डांस’ शैली भी काफी लोकप्रिय हो गई है, जो कि पहले बिहार में नटुआ नाच के नाम से प्रसिद्ध थी, जिसमें एक पुरुष महिला जैसी वेशभूषा में महिलाओं के वस्त्र पहन कर नृत्य करता है। आज भी बिहार के कई हिस्सों में इस नाच को पसंद किया जाता है। इन्होंने अपने नाटक के जरिए कई सामाजिक कुरीतियों पर चोट किया।
भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया. आज कितने ही लोग ऐसे होंगे जिन्हें भिखारी ठाकुर के इस भोजपुरी साहित्य जगत के योगदान के बारे में जानकारी नहीं होगी! ऐसे महान रचनाकारों की रचनाओं से ही भोजपुरी भाषा साहित्य जगत हमेशा स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेगा और समाज को पुष्पित करता रहेगा।
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